माटी के मितान
धन धन मोर माटी के मितान ,
कहिथे तोला गवईहा किसान ।
खांद मा नांगर ,मुड़ मा खुमरी ,
हाथ मा धरे तुतारी।
किसम किसम के बिजहा बोवय तै ,
खेत खार अऊ बारी ,
कहिथे तोला भुय्या के भगवान ,
धन धन मोर माटी के मितान ,
कहिथे तोला गवईहा किसान ।
कहिथे किसनहा झन काटव रुखुवा ,
इहि धरती के गहना ऐ ,
लकलकावत भोमरा ले दुरिहा ,
इकरे छांव मा रहना हे ,
झन करव भईया ,
भुय्या के अपमान ,
धन धन मोर माटी के मितान ,
कहिथे तोला गवईहा किसान ।
रचनाकार -सूरजभान
सहयोग - जितेन्द्र कुमार
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