माटी के रंग छत्तीसगढ़ का विचार मंच

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सोमवार, 2 दिसंबर 2013

मन की तरंग बिन डोर पतंग


मेरे मन में बसी एक अदनी सी काया
जो मैं चाह कर भी
साफ साफ देख नही पाया
क्योकि
मुझे डर है कि
ये सूरत कही गुम ना हो जाए
एक धुंधली सी रोशनी में वो चमकती सी आभा
और वो हल्की सी चेहरे पे खुशीयो का साया
गोरे बदन पर ये जुल्फों का साया
चाहकर भी मैं खुद को रोक ना पाया
ये हसीन सपने और वो सुंदर सी काया
रेशम के कपडो से सजी है माया
माया के छल ने फिर मुझे भरमाया
सपनो की दुनिया में हकीकत का छाया
अब आंख खुली तो यकी ना आया
मैंने खुद को अकेला पाया

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