वाह रे मयारू मुसुवा ,
बारी बखरी ला कोड़ डरे ,
धान के कोठी ला फोड़ डरे ,
मोर अंतस ला कचोट डरे ,
तोला मै कतका सिधवा जानेव -गणेश सवारी मै हर मानेव ,
तेकरे सेती दिनों दिन – भारी तै मेछरावत हस ,
कुमड़ा कुंदरू हमर बखरी के ,
एके झन तै खावत हस ,
हमन तो रहेर काड़ी ,
तै घोसघोस ले मोटावत हस ,
रहा रे मयारू मुसुवा ,
तोर बर मै भंडारा लगाहू ,
छप्पन भोग मै तोला खवाहू ,
नेवता मा तोला बलाहू ,
लोग लईका सन आबे ,
पेट फुटत ले खाबे ,
नींद भर के सुतबे ,
सरग लोक मा जाबे ।
रचनाकार -सूरजभान
सहयोग - जितेन्द्र कुमार
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