कतका सुघ्घर रूप हे
का पोगरी तोरेच बर धूप हे
का देखइया मन हांसही ,डोकरा मन खांसही
सबो मन तो चुप हे
का पोगरी तोरेच बर धूप हे
घुम-घुम ले मुड़ कान ला
गमछा मा तोप डारे
तै समझत हस दुनिया मा
एके झन रोप डारे
तोर बर का ये हेलमेट ऐ
का गोड़ पोंछे के वेलवेट ऐ
लागत हे तोर चेहरा कुरूप हे
का पोगरी तोरेच बर धूप हे
कभु न कभु धोखा खाबे तै
मुंहू बांधे कहंचो जाबे तै
विपत के बेरा अपने आप ला
खुदे अकेला पाबै तै
ये भुइयां वाटर प्रूफ हे
का पोगरी तोरेच बर धूप हे
मुंहू बांधे मा कोनो चिन्हय नहीं
का दुःख तै कोन ला बताबे
डाकू के गिनती मा पक्का गिनाबे
रो रो के तै पछ्ताबे
देखेन कतको तुम्हरे सरीख ला
जेन आज कले चुप हे
का पोगरी तोरेच बर धूप हे
का पोगरी तोरेच बर धूप हे
रचनाकार - सूरजभान
सहयोग - जितेन्द्र कुमार
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