शुरुआत कैसे होगी यह बात आदमी के मन में इस कदर घर कर लेता है की वो शुरुआत करने से पहले ही अपना मन निराश कर बैठता है उन निराश होने वाले लोगो को ये कहूँगा की नर हो ना निराश करो मन को आप लोगो ने ये पाठ तो बच्चो के मुह से सुना ही होगा ना रो ना निराश करो मन को ……………अब ये बात मेरे दिमाग में जैसे ही आई ये क्या मुझे तो एक नई शुरुवात मिल चुकी है मुझे रास्ता दिखाई देने लगा है क्योकि मुझे इस पाठ से जुदा हुआ एक किस्सा याद आया है जिसे मै आप सब के साथ बाटना चाहूँगा ………
यह बात लगभग 11 से 12 वर्ष पुरानी है
हुआ कुछ यु की मेरे परम मित्र कमलेश सिंह गंगवाल की एक बुक डिपो की दुकान थी जहाँ पर हम लोग गप्पे लगाते हुए बैठे हुए थे इतने में दो छोटे
छोटे बच्चे दुकान में आकर कमलेश से बोलता है भैया कलम देना कमलेश बोला कलम तो …………नई हे भाई ……………..बच्चो के चेहरे का भाव बदल गया वो दोनों मुह उतारकर जाने के लिए मुड़े मैंने देखा बच्चे नीरस हो गए है उनका उतरा मन देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा सो मैंने उनसे पूछा तुमन कोन कक्षा मा पढतो जी वो रोनी सूरत बनाकर बोले दूसरी ये देखकर मुकेश नाम का एक लड़का बोला नर हो ना निराश करो मन को
अब ये पाठ तो मैंने ना पढ़ा था ना सुना था मुझे हो गयी थोड़ी सी गलतफहमी मैंने वो लाइन को इस तरह समझा ना रो ना निराश करो मन को मुझे ऐसा इसलिए लगा क्योकि बच्चे दुखी थे तो उनको सांतावना देने के लिए जो भाव मेरे मन में था उससे यही प्रतीत हुआ की न रो न निराश करो मन को पर मेरे मित्र कमलेश की समझ देखिये उसने ये कहा नरवो ना निराश करो मन को अब हम दोनों में बहस छिड़ी की वो लाइन क्या थी उसका अर्थ क्या था और बच्चो की वस्तुस्तिथि को देखते हुए उस लाइन को क्या होना था ये एक पहेली बन गयी क्योकि उस जगह पर तीनो लाइन सही बैठती थी आप के हिसाब से क्या होना चाहिए
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