माटी के रंग छत्तीसगढ़ का विचार मंच

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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

पुरखा के खेत अउ पुरखा के बारी

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पुरखा के खेत अउ पुरखा के बारी
बेंचें के नोहे राखेच भर के हे पारी

मइनखे कथे मोर खेत मोर बारी
अरे तोर नोहे  बबा...
एहा हरे हमर पुरखा के उधारी
 हमर काम तो करना हे रखवारी
 आज मोर ता काली तोर पारी

इही माटी मा कतको मालिक पच गेहे
तब ले ए खेत अउ बारी हा आज ले बच गेहे

करम के बाढी अउ करम के उधारी
छूटे के बेर तोला पड़हि भारी
बने बने करम कर
तहन काबर भटकबे
एकर दुवारी वोकर दुवारी।

जीतेन्द्र कुमार साहू