माटी के रंग छत्तीसगढ़ का विचार मंच

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गुरुवार, 21 नवंबर 2013

मयारू मुसुवा


वाह रे मयारू मुसुवा ,
बारी बखरी ला कोड़ डरे ,
धान के कोठी ला फोड़ डरे ,
मोर अंतस ला कचोट डरे ,
तोला मै कतका सिधवा जानेव -गणेश सवारी मै हर मानेव ,
तेकरे सेती दिनों दिन – भारी तै मेछरावत हस ,
कुमड़ा कुंदरू हमर बखरी के ,
एके झन तै खावत हस ,
हमन तो रहेर काड़ी ,
तै घोसघोस ले मोटावत हस ,
रहा रे मयारू मुसुवा ,
तोर बर मै भंडारा लगाहू ,
छप्पन भोग मै तोला खवाहू ,
नेवता मा तोला बलाहू ,
लोग लईका सन आबे ,
पेट फुटत ले खाबे ,
नींद भर के सुतबे ,
सरग लोक मा जाबे । 
रचनाकार -सूरजभान
सहयोग - जितेन्द्र कुमार

बुधवार, 20 नवंबर 2013

वास्तव मा भगवान हे


मै अतकी मानथव , की वास्तव मा भगवान हे
तेकरे सेती तो गीता रामायण
जग मा परमान हे ,
राम -लखन ला इहींचे पाबे ,
इहींचे सीता अउ शक्ति ,
साधु संत के इहींचे बसेरा
इहींचे चारो धाम हे ,
ध्यान लगा ले एक घड़ी तै ,
बनही बिगड़े काम हे
मै अतकी मानथव , की वास्तव मा भगवान हे
रचनाकार -सूरजभान
सहयोग - जितेन्द्र कुमार